लाल कमल : अंधविश्वास को मात देता उजाला

आईएएस यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने के बाद आनंद अभी बेंगलुरु में एक ऊंचे प्रशासनिक पद पर काम कर रहा है. महात्मा गांधी की पुकार पर साल 1942 के आंदोलन में स्कूल छोड़ कर देश की आजादी के लिए कूद पड़ने वाले करमना गांव के आदित्य गुरुजी के पोते आनंद को देश और समाज के प्रति सेवा करने की लगन विरासत में मिली है. आनंद बचपन से ही अपने तेज दिमाग, बड़ेबुजुर्गों के प्रति आदर और हमउम्र व बच्चों के बीच मेलजोल के साथ पढ़नेलिखने व खेलनेकूदने में भाग लेने के चलते बहुत लोकप्रिय था.

गांवसमाज के हर तीजत्योहार, शादीब्याह, रीतिरिवाज में आनंद को उमंग के साथ हिस्सा लेने में बहुत खुशी होती थी. केवल छात्र जीवन में ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक सेवा में आने के बाद भी होलीदशहरा में वह गांव आने का मौका निकाल ही लेता था.

इस बार मार्च महीने में दफ्तर के कुछ काम से उसे पटना जाना था. पटना आने के बाद आनंद ने एक दिन गांव जाने का प्रोग्राम बनाया.

आनंद को गांव आ कर काफी अच्छा लगता है, पर अब यहां बहुतकुछ बदल गया है.

यह बात आज के बच्चे सोच भी नहीं सकते कि जहां पहले कभी कच्ची सड़क पर बैलगाड़ी और टमटम के अलावा कोई दूसरी सवारी नहीं हुआ करती थी, वहां अब पक्की रोड पर बसें और आटोरिकशा 12 किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन तक जाने के लिए हर 15 मिनट पर तैयार मिल जाते हैं.

यहां तक कि पटना से निकलने वाले सभी अखबार अब इस गांव में आते हैं और हौकर इन्हें घरघर तक पहुंचा जाता है. साथ ही, टैलीविजन पर भी अब हर छोटीबड़ी खबर और मनोरंजन के तमाम कार्यक्रमों समेत नईपुरानी फिल्में भी देखने को मिल जाती हैं.

अब आनंद के बाबूजी तो रहे नहीं, पर चाचा और चाची रहते हैं. उसे देखते ही उन के चेहरे पर खुशी की चमक आंखों में नमी लिए पसर गई.

आनंद ने चाचा के पैर छुए. उन्होंने उस के सिर को दोनों हाथों में ले कर चूमते हुए ढेर सारा आशीर्वाद दिया.

चाची दोनों की बातें सुनते हुए अंदर से बाहर आ गई थीं. आनंद ने उन के भी पैर छुए.

चाची ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हम कह रहे थे कि आनंद हम को देखे बिना जा ही नहीं सकता.’’

‘‘कैसे हैं आप लोग?’’ आंखों में भर आए आंसुओं को रूमाल से पोंछते हुए आनंद ने पूछा.

‘‘तुम्हारे जैसे बेटे के रहते हमें क्या हो सकता है? हम भलेचंगे हैं. लो, कुछ चायनाश्ता कर के थोड़ा आराम कर लो, तब तक मैं खाना तैयार कर लेती हूं,’’ कह कर चाची अंदर चल पड़ीं.

‘‘बहुत परेशान न होइएगा चाची. सादा खाना ही ठीक रहेगा,’’ आनंद ने कहा और चायनाश्ता करते हुए चाचा

से अपने खेतखलिहान के साथ ही साफ बागबगीचे, गांवसमाज की बातें करने लगा.

चाची के हाथ का बना खाना खाते हुए आनंद को बरबस ही बचपन की यादें ताजा हो आईं.

खाना खाने के बाद आनंद ने कुछ देर आराम किया. शाम को चाचा ने फागू को बुलाया. उन्होंने सरसों के सूखे डंठलों को खलिहान से मंगवा कर परिवार के सदस्यों की संख्या के हिसाब से एक ज्यादा होल्लरी यानी लुकाठी बनवाई.

होलिका दहन के लिए गांव की तय जगह पर लोग समय पर इकट्ठा हो गए थे. आनंद भी चाचा के जोर देने पर वहां पहुंच गया था.

वैसे, होली के इस मौके पर होने वाली हुल्लड़बाजी और नशे के असर से सहीगलत न समझ पाने वाले नौजवानों की हरकतों को आनंद बचपन से ही नापसंद करता रहा है.

आनंद को यह बात तो अच्छी लगती कि होलिका दहन में गांवमहल्ले की बहुत सी गंदगी, बेकार की चीजें, जो सही माने में बुराई की प्रतीक हैं, जला कर आबोहवा को कुछ हद तक साफ करने में मदद मिलती है. परंतु वह यह भी मानता है कि होलिका दहन के ढेर से उठती आग की लपटों से कभीकभार आसपास के हरेभरे पेड़ों और मकानों को पहुंचने वाले नुकसान से इस को मनाने के सही ढंग पर नए सिरे से सोचना चाहिए.

आनंद को देख कर गांव के बहुत से नौजवान लड़के उस के पास आ गए. उन सभी लड़कों ने अपने मातापिता से आनंद के बारे में पहले ही बहुतकुछ सुन रखा था. वे अपने बच्चों को आनंद जैसा बनने की सीख देते थे.

आनंद को भी उन से मिल कर बहुत अच्छा लगा.

आनंद ने उन नौजवानों से दोस्त की तरह कई बातें कीं, फिर होलिका दहन के बारे में भी अपने मन की बातें उन से साझा कीं. वे सभी आनंद जैसे एक बड़े ओहदे वाले शख्स की इतनी अपनेपन भरी बातों से बहुत ज्यादा प्रभावित थे.

एक लड़के सुंदर ने आगे आते हुए कहा, ‘‘आनंद अंकल, हम आप से वादा करते हैं कि आगे से सावधान रहेंगे और किसी भी दुर्घटना की नौबत नहीं आने देंगे.’’

सुधीर ने भी भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘अंकल, आज होली के नाम पर न तो कोई गंदे गाने गाएगा और न ही गंदी हरकत करेगा.’’

और सच में ही उस शाम के होलिका दहन को बड़ी सादगी से मनाया गया.

आनंद ने सभी को होली की मिठाई खिलाई. उस के बाद वह अपने चाचा के साथ घर लौट आया.

चैत्र पूर्णिमा की रात थी. दालान में चारपाई पर लेटे आनंद को चांदनी में नहाई रात काफी अच्छी लग रही थी. नींद की गहराई में धीरेधीरे उतरते हुए भी आनंद के कानों में होली के गीत सुनाई पड़ रहे थे.

अचानक ही तभी कुत्तों के भूंकने की आवाजों को बीच गांव के लोगों की घबराहट भरी आवाजों का शोर जोर पकड़ता हुआ सुनाई पड़ा.

‘‘मालिक, गोलीबंदूक के साथ बसहा गांव वाले फसल लगे खेतों की सीमा पर आ कर लड़नेमरने को तैयार खड़े हैं,’’ दीनू को अपने चाचा से यह कहते हुए सुन कर चौंकता हुआ आनंद झटके से उठ बैठा.

आनंद ने अपने मोबाइल फोन से कुछ संबंधित बड़े पुलिस अफसरों से बात करने की कोशिश की.

रास्ते में दीनू ने बताया कि आधी रात के बाद गांव के कुछ अंधविश्वासी लोग देवी मां के मंदिर में जमा हुए थे.

तांत्रिक इच्छा भगत ने पहले देवी मूर्ति की लाल उड़हुल के फूलों, रोली, अबीरगुलाल से पूजा की थी, उस के बाद एक तगड़ा काला कुत्ता भैरों के रूप में वहां लाया गया.

वहां जुटे लोगों ने खुद शराब पीने के साथसाथ उस कुत्ते को भी शराब पिलाई और फूलमाला से पूजा की गई.

नए साल में अपने गांव की खुशहाली और पुराने साल आई मुसीबतों को हमेशा के लिए भगाने के लिए उन्होंने करायल, अरंडी का तेल, पीली सरसों, लाल मिर्च, सिंदूर, चावल वगैरह को एक छोटे मिट्टी के बरतन में ढक कर भैरों कहे जाने वाले कुत्ते की गरदन में बांध दिया.

तांत्रिक इच्छा भगत ने मंदिर से एक जलता हुआ दीया उठा कर कुत्ते की गरदन में सामान समेत बंधे मिट्टी के बरतन में सावधानीपूर्वक रख दिया. फिर दीए की गरमी से परेशान कुत्ता भूंकता हुआ बसहा गांव की तरफ दौड़ पड़ा.

इच्छा भगत और कुछ लोग इस बात को पक्का करना चाहते थे कि वह कुत्ता वापस उन के अपने गांव में न लौटे.

उधर खेतों की रखवाली कर रहे बसहा गांव के कुछ किसानों ने दूसरे छोर पर आग की लपटों के साथ कुत्ते की गुर्राहट भरी आवाज सुनी. कुछ ही देर में पकने को तैयार गेहूं की फसल लपटों में झुलसने लगी थी.

रखवाली कर रहे किसानों को पूरा माजरा समझने में ज्यादा समय नहीं लगा. उन्होंने दौड़ कर तमाम गांव वालों को बुला लिया. ट्यूबवैल चला कर पानी से आग बुझाने के साथसाथ कुछ लोग गोलीबंदूक के साथ इस घटना के पीछे रहे करमना गांव को सबक सिखाने को ललकारने लगे थे. हवा में गोलियों की आवाजें गूंजने लगी थीं.

इस से पहले कि करमना गांव के कुछ अंधविश्वासी और नासमझ तत्त्वों की शरारत के कारण पड़ोसी गांव वालों की होली की खुशी खूनखराबे और मातम की भेंट चढ़ जाती, आनंद अपने साथ जिला मजिस्ट्रेट और एसपी की टीम मौके पर ले कर पहुंच गया. उस ने गुस्साए लोगों को समझाबुझा कर शांत किया.

अंधविश्वास में ‘भैरव टोटका’ करने वाले इच्छा भगत व दूसरे लोगों को पुलिस पकड़ कर वहां थोड़ी ही देर में पहुंच गई.

आनंद के कहने पर उन लोगों ने बसहा गांव के लोगों से अपने गलत अंधविश्वास के चलते किए गए काम के लिए माफी मांगी.

‘‘हम आप के पैर पकड़ते हैं भैया, हमें माफ कर दीजिए. हम शपथ लेते हैं कि आगे से नासमझी और अंधविश्वास से भरा कोई काम नहीं करेंगे.’’

तब तक आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की टीम भी वहां आ चुकी थी.

तेजी से किए गए बचाव काम से आग को ज्यादा फैलने के पहले ही बुझाने में कामयाबी मिल गई थी.

आनंद ने गांव वालों की ओर से हुई गलती के लिए माफी मांगते हुए कहा, ‘‘रघुवीर, मैं तुम्हारे जज्बात को अच्छी तरह समझ सकता हूं… अपनी जिस फसल को खूनपसीना बहा कर तुम ने तैयार किया है, उस के खेत में इस तरह जल जाने के चलते हुए दिल के घाव को भरना किसी के लिए मुमकिन नहीं है. फिर भी करमना गांव के लोगों की ओर से मैं खुद जिम्मेदारी लेता हूं कि तुम्हें जो भी नुकसान हुआ है, उसे हमारे द्वारा कल ही पूरा किया जाएगा.’’

अपने खेत की तैयार फसल के जलने से नाराज रघुवीर कुसूरवारों को सबक सिखाने पर आमादा था, पर अपने स्कूल के दिनों में सही बात से आगे बढ़़ने की प्रेरणा देने वाले आदित्य गुरुजी जैसे आनंद के रूप में अभी वहां आ खड़े हो गए थे, इसलिए वह अपने गुस्से पर काबू कर गया.

रघुवीर आनंद के पैरों पर झुकता हुआ बोला, ‘‘माफ करें सर. आप की हर बात मेरे सिरआंखों पर.’’

आनंद ने रघुवीर को गले लगाते हुए कहा, ‘‘उठो रघुवीर, अब बसहापुर गांव और करमना गांव आपस में

मिल कर एकदूसरे की मुसीबतों को मिटाते हुए खुशियां लाने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे. तुम बिलकुल चिंता मत करो.

‘‘इस बार गांव के स्कूल वाले मैदान में करमना और बसहा दोनों गांव मिल कर एकसाथ होली मनाएंगे.’’

वहां जमा दोनों गांवों के लोगों के चेहरे पर खुशी की लाली चमक उठी. ‘हांहां’ के साथ ‘होली है होली है’ की आवाजें चिडि़यों की चहचहाहट भरे माहौल में गूंज उठीं.

उसी समय गांव के पूर्वी आकाश में सूरज एक लाल कमल की तरह खिलता नजर आ रहा था.

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