दलाली के कीचड़ में फंसती हुई मनरेगा

बिहार में पटना जिले के नौबतपुर ब्लौक की जमलपुरा ग्राम पंचायत के जमलपुरा गांव में बिचौलियों की खुराफात की वजह से कई मकान आधीअधूरी हालत में हैं. उन की दीवारें तो पक्की बनाई गई हैं, लेकिन छत की जगह फूस डाल दिया गया है.

इस इलाके के ‘विकास मित्र’ रामनाथ राम के मुताबिक, जमलपुरा टोले में तकरीबन 546 महादलित गरीबी की रेखा के नीचे अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं. उन की आमदनी के ज्यादा साधन नहीं हैं. पंचायत समिति के सदस्य अशोक कुमार का कहना है कि इस टोले के लोग गैरमजरूआ जमीन पर रहते हैं. इस का रकबा एक एकड़, 52 डिसमिल है. इस का प्लाट नंबर 527 और खाता नंबर 69 है. अभी तक वासगीत परचा जारी नहीं किया गया है, फिर भी इसी जमीन पर इंदिरा आवास योजना के मकान बनाए जा रहे हैं. इंदिरा आवास योजना के तहत 45 हजार रुपए मिलते हैं और उन में से 7 हजार रुपए डकार लिए जाते हैं.

सरकार ने बढ़ती महंगाई को देखते हुए 5 साल पहले इंदिरा आवास योजना के तहत मकान बनाने वाली रकम तो बढ़ा दी थी, पर इस का फायदा गरीबों के बजाय दलाल उठा रहे हैं.

बड़े पैमाने पर पनप चुके दलालों ने योजना की रकम बढ़ने के बाद अपने कमीशन की रकम भी बढ़ा दी है. नतीजतन, पैसा बढ़ने के बाद भी गरीबों और दलितों को कोई फायदा नहीं हो पा रहा है. इस की वजह से गरीबों को मकान बनवाने में तमाम परेशानियां उठानी पड़ रही हैं. सरकारी रकम में दलालों की बंदरबांट से बहुत से गरीबों के मकान और शौचालय आधेअधूरे रह गए हैं.

कच्चा काम कराने के एवज में 26 फीसदी और पक्का काम कराने पर 22 फीसदी कमीशन देना पड़ता है. मिट्टी संबंधी काम कच्चा काम होता है. इस में मनरेगा के कार्यक्रम परियोजना पदाधिकारी को 10 फीसदी, रोजगार सेवक को 5 फीसदी, इंजीनियर को 5 फीसदी, असिस्टैंट इंजीनियर को 2 फीसदी और कंप्यूटर औपरेटर को एक फीसदी चढ़ावा देना पड़ता है.

पक्का काम कराने में सोलिंग कराने, पुलपुलिया बनाने पर परियोजना पदाधिकारी को 10 फीसदी, रोजगार सेवक को 5 फीसदी, इंजीनियर को 5 फीसदी, असिस्टैंट इंजीनियर को 2 फीसदी कमीशन मिल जाता है.

मनरेगा के कामों की जांच करने गई एनजीओ की टीम को मुखिया जम कर धमकाते भी हैं. बिहार के बांका जिले के चांदन ब्लौक की बड़फेरा तेतरिया ग्राम पंचायत के मुखिया ब्रह्मानंद दास उर्फ रामजी की मनमानी से मनरेगा का मकसद तारतार हो रहा है.

यह मुखिया मनरेगा के तहत काम करवा कर मजदूरों को मजदूरी नहीं देता है. जब मजदूर हल्ला करते हैं, तो कुछ कपड़े और अनाज दे कर उन का मुंह बंद कर देता है. उस ने आज तक मजदूरों को काम के बदले मजदूरी नहीं दी है.

बड़फेरा तेतरिया गांव की मजदूर बड़की मरांडी ने बताया कि उस के पास जौब कार्ड तो है, पर उस के हिसाब से काम नहीं मिलता है. मौखिक रूप से ही काम दिया जाता है. उस के जौब कार्ड का नंबर 333003 है.

बड़की मरांडी आगे बताती है कि 12 दिसंबर, 2010 से ले कर 25 दिसंबर, 2010 तक तिबतिमाली से ले कर अंतुआ काली मंदिर तक सड़क बनाने में मजदूरी का काम मिला था, पर आज तक मजदूरी नहीं मिली. वह और भी मजदूरों के नाम गिनाती है, जिन्हें मजदूरी नहीं दी गई.

कई मजदूरों ने बताया कि उन्होंने कई दफा मुखिया से मजदूरी की मांग की, पर मुखिया पैसे की कमी का बहाना बना कर उन्हें चलता कर देता था.

मुखिया की सीनाजोरी का यह हाल है कि इस बारे में बात करने पर वह सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर देता है. मनरेगा को ले कर ज्यादातर मुखिया की यही दलील होती है कि सरकार पैसा ही नहीं भेज रही है, तो ऐसे में मजदूरों को किस तरह से समय पर मजदूरी दी जा सकती है.

गौरतलब है कि मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूर को एक दिन के काम के बदले में 140 रुपए मजदूरी मिलती है. इस हिसाब से 14 दिनों के काम के बदले एक मजदूर को 1960 रुपए मिलने चाहिए. लेकिन मुखिया ने मजदूरों को मजदूरी की रकम के बजाय घटिया सामान दे कर उन का मुंह बंद कर दिया, जो सरासर गलत है.

सामाजिक कार्यकर्ता आलोक कुमार कहते हैं कि नकद पैसा मिलने से मजदूर अपनी जरूरत के हिसाब से उसे खर्च सकते हैं, पर मजदूरी के बदले घटिया सामान थमा कर मुखिया ने मजदूरों के साथसाथ मनरेगा के नियमों के साथ भी खिलवाड़ किया है. अगर मनरेगा के कामों की सही तरह से जांचपड़ताल की जाए, तो इस जैसे हजारों मुखिया और अफसरों की काली करतूतों का खुलासा हो सकता है.

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