मिसाल : साफसफाई में अव्वल है रंगसापाड़ा

गुवाहाटी, असम से तकरीबन डेढ़ सौ किलोमीटर दूर ग्वालपाड़ा जिले में एक ब्लौक है बालिजाना और वहीं का एक गांव है रंगसापाड़ा. 88 घरों वाले इस गांव की कुल आबादी महज 5 सौ लोगों की है, लेकिन इन चंद लोगों ने मिल कर जो मिसाल कायम की है, वह आज पूरे असम में किसी विजयगाथा की तरह सुनाई जाती है. दरअसल, रंगसापाड़ा के लोगों ने साफसफाई को आज से 27 साल पहले ही अपना मूलमंत्र बना लिया था. उसी का नतीजा है कि ग्वालपाड़ा जिले को पूरे असम का सब से साफसुथरा गांव होने का खिताब मिला है.

रंगसापाड़ा को यह कामयाबी यों ही नहीं मिली. मेहनतमजदूरी करने वाले इस गांव के लोगों में साफसफाई को ले कर इतनी समझ कैसे आई, उस के लिए हमें 1990 के समय में जाना होगा.

गांव के मुखिया रौबर्टसन मोमिन बताते हैं कि दूसरे गांवों की तरह उन के गांव में भी गंदगी रहती थी, लोग नशे का सेवन करते थे, आपस में लड़ाईझगड़ा भी होता था.

एक दिन गांव वालों ने मिल कर सोचा कि गांव की हालत सुधारने की दिशा में कुछ करना चाहिए. उन्होंने एक बैठक बुलाई और आपसी समझ से कुछ सख्त फैसले लिए गए, जैसे कोई भी खुले में शौच नहीं जाएगा, घर के आगे गंदगी नहीं डालेगा और किसी तरह का नशा नहीं करेगा. ये 3 प्रण गांव वालों ने लिए और इन नियमों को तोड़ने की सजा भी तय की गई.

जरा सोच कर देखो कि आज से 27-28 साल पहले पूरब के सुदूर गांव वालों ने नियम तोड़ने पर क्या जुर्माना तय किया था? पूरे 5001 रुपए का. इतना बड़ा जुर्माना उस जमाने में तो क्या आज भी बहुत भारी लगता है.

रौबर्टसन मोमिन बताते हैं कि जुर्माना ज्यादा इसलिए रखा गया कि कोई इस को भरने के डर से नियम न तोड़े. मगर गांव वालों ने इस स्वच्छता मिशन में पूरा साथ दिया और कभी ऐसी नौबत नहीं आई कि किसी पर जुर्माना लगाना पड़ा हो.

उन्होंने आगे बताया कि साल 2000 में विलेज मैनेजमैंट कमेटी बनाई गई. इस में 10 सदस्य हैं. कमेटी का चुनाव हर साल गांव वाले मिल कर करते हैं और यह कमेटी गांव की साफसफाई, भाईचारे और नशे वगैरह पर नजर रखती है.

गारो आदिवासी समाज के इस गांव में पढ़ाईलिखाई की दर भी सौ फीसदी है. यहां सभी लोग अपनी बेटियों को पढ़ाते हैं. 9वीं जमात में पढ़ने वाली सल्ची मोमिन रोजाना साइकिल से 12 किलोमीटर दूर स्कूल में पढ़ने जाती है. उस के गांव में 8वीं जमात तक ही पढ़ाई का इंतजाम है.

बालिजाना ब्लौक की प्रमुख रत्ना देवी बताती हैं कि पहले यहां लोगों ने घरों में ही कच्चे शौचालय बनाए थे. इस के लिए सभी ने मिल कर श्रमदान किया था. सरकार की तरफ से योजना आने पर अब हर घर में पक्के शौचालय बन गए हैं. जल्द ही गांव को पक्की सड़क से भी जोड़ा जाएगा.

सभी लोग मिल कर हफ्ते में एक दिन पूरे गांव की सफाई करते हैं. पीने के पानी के लिए यहां 7 हैंडपंप भी लगे हैं.

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